मोहनजोदड़ो जैसी सभ्यता की खोज कैसे करते हैं जाने
मानव में ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ यह उत्सुकता हुई कि ऐसी कोई विधि विकसित की जाए जिससे प्राचीन काल की सभ्यताओं के बारे में जानकारी करना संभव हो सके इसी क्रम में ऐसी कई वैज्ञानिक विधियों का विकास किया गया जिसके बारे में हम यहां चर्चा करेंगे ।
आइए इसके बारे में जाने
अंग्रेजों के भारत में आने से पहले यहां इतिहास और प्राचीन सभ्यताओं के नाम पर केवल धार्मिक किताबों का ही पठन-पाठन होता था क्योंकि यहां के लोगों को ऐसे किसी विधि के बारे में जानकारी थी ही नहीं क्योंकि यहां के लोग इतिहास लिखना जानते ही नहीं थे और ना ही इतिहास का संग्रह करना महत्वपूर्ण था। इस पूरे भारत की शिक्षा प्रणाली में निराधार तथ्यों की जानकारी और ढोंग पाखंड का जाल बिछा था अंग्रेजों के आने के बाद यहां की शिक्षा प्रणाली को नई दिशा मिली जिससे इतिहास और पुरातत्व का अध्ययन प्रारंभ हुआ।
भारत में तो पुरा तत्वों के अवशेषों को ढोंग पाखंड से जोड़ दिया गया था इसलिए मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी सभ्यताओं के साथ-साथ भगवान बुद्ध के सभी प्राचीन स्थल उपेक्षा के शिकार हो गए अर्थात उन पर ध्यान नहीं दिया गया पुरातत्व को सही दिशा और मार्गदर्शन तब मिला जब 1856 में लार्ड एलेक्जेंडर कनिंघम ने प्राचीन स्थलों का विधिवत सर्वेक्षण का कार्य किया और उसके बाद ही लॉर्ड कनिंघम ने 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की इन्होंने ह्वेनसांग की यात्रा पद का अनुसरण करते हुए दो खोजी अभियान 1861 से 1868 तक तथा 1871 से 1885 के मध्य चलाया इसके तहत बड़े स्तर पर उत्तर भारत का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया गया
दूसरा महत्वपूर्ण खोजी अभियान 1921 से यह मान का आरंभ किया गया कि पहले से खोजे गए बौद्ध स्थलों की तरह यह भी कोई बौद्ध स्थल ही होगा लेकिन इस खुदाई से ज्ञात हुआ कि यह प्राचीन सभ्यता से संबंधित है जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना गया।
प्राचीन वस्तुओं की खोज के लिए वैज्ञानिक कई विधियों का उपयोग करते हैं जिसमें रेडियो कार्बन 14 और जैव नवीन विश्लेषण पद्धति सम्मिलित है। इन विधियों के माध्यम से ही प्राचीन धरोहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे सभ्यताओं की जानकारी की गई।
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