इसके पालन से न आग जला पायेगी और न पानी डुबो पायेगी।
जब से मानव समस्याओं का विकास हुआ है तब से लेकर आज तक बहुत सारी विधाओं तकनीकी ज्ञान और वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास हुआ इसके साथ साथ एक और ज्ञान है जो मानव जीवन के हर स्तंभों को स्पर्श करती है। उस ज्ञान का एक वैज्ञानिक सिद्धांत और आधार है। वर्तमान समय में कुछ वैज्ञानिक इसे सूक्ष्म ज्ञान और पराभौतिकी से संबंध जोड़कर समझने का प्रयास करते हैं। इसे कुछ हद तक दुनिया के कुछ वैज्ञानिको ने यंत्र और गहन अध्ययन के आधार पर इसके प्रभाव को समझने के लिए अलग-अलग कोशिश किये हैं।
मनुष्य के अंदर शक्ति का संचार मस्तिष्क में उपस्थित बहुत सारे न्यूरॉन्स और तंत्रिकाओं के फैले जाल पर निर्भर करता है। आज तक मस्तिष्क के क्षमताओं का पूरा पूरा उपयोग नहीं हो सका है। यहां तक सर अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे लोग भी अपने दिमाग का 10 परसेंट हिस्सा ही उपयोग कर पाए हैं।लेकिन आज जो हम बात करने जा रहे हैं वह सामान्य तौर पर होने वाली घटनाओं और चीजों से बहुत हटकर है।
आइए इसके बारे में और गहराई से जाने
आज से 2500 वर्ष पूर्व धरती पर एक महान वैज्ञानिक, महान शोधकर्ता , मानव जीवन की प्रणाली गहराई से समझने वाला, अद्भुत महामानव संसार में आकर इस विशेष विद्या को खोज कर जनहित में खुले मन से बिना किसी स्वार्थ भाव के जाति, वर्ग ,वंश के संबंधों से रहित होकर हर सुयोग्य व्यक्ति को ज्ञान बाटकर उन्हें प्रसन्नता से भर दिया । यह महान ज्ञान देने वाला कोई और नहीं बल्कि तथागत बुद्ध ही हैं जिन्होंने इस महान विशालतम शक्ति को तीन स्तंभों में बाटकर अध्यात्म की महान अट्टालिकाओं को खड़ा कर दिया। तीनों स्तंभों में उन्होंने यह बताया कि संसार का कोई भी व्यक्ति शील समाधि प्रज्ञा का अनुपालन करते हुए अध्यात्म के उच्चतम शिखर पर पहुंच सकता है।
जो आज का टाइटल रखा गया है वह उन बताए गए स्तम्भों में से मात्र एक स्तंभ का ही परिणाम है कि इस स्तंभ का पालन करते हुए व्यक्ति अन्य सामान्य व्यक्ति से अलग हो सकता है। जिस शक्ति के बारे में चर्चा की गई है वह गुण व्यक्ति के अंदर तब आता है जब वह व्यक्ति शीलवान हो जाता है क्योंकि शीलवान व्यक्ति को कोई भी आग ना जला सकती है और ना ही पानी का संचय उस व्यक्ति को डुबो सकता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति पर किसी प्रकार का कोई विष का प्रभाव भी नहीं पड़ता है।
शील के बारे में वृहद चर्चा विनय पिटक में उल्लेखित किया गया है। विनय पिटक के अनुसार यदि कोई भिख्खु इस मार्ग पर चल रहा है तो पुरुष भिख्खु के लिए 227 शील और महिला भिख्खुणी के लिए 311 शील का निर्धारण किया गया है।
यदि संसार का कोई भी व्यक्ति इन शीलो का अनुपालन करता है तो उस व्यक्ति को कोई भी प्राकृतिक आपदा क्षति नहीं पहुंचा सकती है। वैसे सामान्य व्यक्ति के लिए पंचशील अर्थात पांच शील अथवा अष्टशील ही पर्याप्त है इसका अनुपालन भी कम शक्ति नहीं देता शीलवान व्यक्ति आदरणीय सम्मानीय एवं पूजनीय होते हैं क्योंकि ऐसे व्यक्ति मिथ्या वचन तथा व्यभिचार से दूर रहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें