खाने में कहीं आप सफेद जहर तो नहीं खा रहे है आप
खाने में कहीं आप सफेद जहर तो नहीं खा रहे है आप
आज के नए लेख का टॉपिक है खाने में कहीं सफेद जहर तो नहीं खा रहे हैं आप
खाने-पीने और भोज्य सामग्री के बारे में हमारे देश भारत की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है क्योंकि अधिकतर प्रोडक्ट में मिलावट और गुणवत्ता की कमी देखी जाती है और यह लोकल कंपनियों में ही नहीं बड़ी-बड़ी कंपनियों में भी मिलावट देखने को मिला है
गंभीर चिंता का विषय यह भी है कि भारत के हर त्यौहार के उपलक्ष में बनाई गई मिष्ठान और खाद्य सामग्रियों में 98% तक मिलावट देखी जाती है ऐसी स्थिति में हर नागरिक को जागरूक रहना बहुत ही जरूरी है क्योंकि भारत में व्यापार और उद्योग करने वाले को जनता के जीवन से कोई मतलब नहीं उनको केवल अपने लाभ से मतलब है।
भारत सरकार की सभी जांच एजेंसियां और जनहित विभाग बिना दांत वाले शेर के समान है इसलिए जनता को स्वयं जागरूक और जानकारी करने की जरूरत है जिससे अपने जीवन की रक्षा स्वयं कर सके
ऐसी ही जानकारी को बताने के लिए आज के इस लेख में कोशिश किया जा रहा है आईये इस के बारे में और जाने
आज के इस लेख में विशेष जानकारी दी जा रही है जिससे लोगों के जीवन की रक्षा हो सकेगी सफेद जहर के बारे में जो बताया गया है उसका सफेद चीनी से मतलब है।सफेद चीनी को बनाने के लिए बहुत सारे हानिकारक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। सफेद चीनी का मतलब है पॉली सेकेराइड।जो विशेष प्रक्रिया से बनता है। हमारा शरीर डाइ सेकेराइड और मोनो सेकेराइड को आसानी से बचा सकता है। जबकि सफेद शक्कर जो पॉली सेकेराइड होता है। हमारा शरीर इसे पॉली सेकेराइड मे परिवर्तित करती है इसके लिए जब लीवर चीनी को पचाने का कार्य करता है तो पचाने के लिए काफी ऊर्जा और कैल्शियम की जरूरत होती है यदि लंबे समय तक सफेद चीनी का उपयोग किया जाए तो चीनी को पचाने के लिए हड्डियों में उपस्थित कैल्शियम ज्यादा खर्च होगी जिससे हड्डियों से संबंधित बीमारी होने लगेगी जैसे गठिया ,ऑस्टियोपोरोसिस, घुटनों का दर्द ,जोड़ों का दर्द ,अर्थराइटिस आदि रोग होने लगेंगे अर्थात शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर घुटनों का दर्द ,जोड़ों का दर्द ,गठिया रोग जैसी समस्या उत्पन्न होने लगेगी।
चीनी को बनाने की प्रक्रिया
चीनी को बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले गन्ने के रस को हार्ट सल्फाॅनेशन अर्थात गर्म सल्फर डाइऑक्साइड से गुजारा जाता है उसके बाद रस के गाढ़े भाग में डिसमेट नामक प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है।
डिसमेट प्रक्रिया में फारमेल्डिहाइड का उपयोग होता है। फारमेल्डिहाइड वह रसायन है जिससे मरे हुये जानवरों एवम प्राणियों को सुरक्षित रखा जाता है। अस्पताल में लाशों को सुरक्षित रखने के लिए इसी रासायनिक घोल का उपयोग किया जाता है। शरीर 40 ppm फारमेल्डिहाइड लेने पर यह उत्तकों और कोशिकाओं को सख्त बना देती है।
गन्ने के रस को तीसरी प्रक्रिया में फास्फोरस पेंटा ऑक्साइड का उपयोग करके इसे दानेदार बनाया जाता है। फास्फोरस पेंटा आक्साइड एक जहरीला रसायन होता है जो शरीर में किसी प्रकार के सूजन के लिए जिम्मेदार होता है इसलिए भी चीनी को सफेद जहर कहा जा सकता है।
चीनी बनाने की अंतिम प्रक्रिया में पॉलीमर का उपयोग करके चीनी को सफेद और चमकदार बनाया जाता है। पॉलीमर कपड़े के धागे को मजबूत और चमकदार बनाने के काम आता है इस प्रकार गन्ने का रस मोनोसेकेराइड रासायनिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद पॉलीसेकेराइड बदल जाता है।
जब चीनी ली जाती है तो शरीर का विटामिन बी नष्ट होने लगता है जिसके कारण हाइपो ग्लेशिमीया जैसी बीमारी हो सकती है। इसके कारण पेन क्रियाज का कार्य धीमा हो जाता है जिसके परिणाम स्वरुप डायबिटीज, खून में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ जाना ,बीपी बढ़ जाना और धीरे-धीरे किडनी का कार्य करना बंद हो जाना।
इस प्रकार 50 ग्राम चीनी रोज खाते हैं तो पेनक्रियाज की उम्र 30% कम हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि साल भर चीनी खा रहे हैं तो मात्र दो माह चीनी खाना छोड़ दें तो आपके शरीर में गुणात्मक सुधार हो जाएगा आप देखेंगे कि आपके शरीर में इन्फेक्शन कम हो रही है। पेट से संबंधित बीमारियां कम हो रही है ,और छोटी-मोटी परेशानियां जैसे कब्ज , एसिडिटी, खट्टी डकार आना यह सब दूर हो जाएगा।
आज के इस लेख में इतना ही समय-समय पर जनहित में नई-नई जानकारी देते रहेंगे धन्यवाद
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