रविवार, 8 अक्टूबर 2017

जब कौरव स्वर्ग लोक से धरती पर आ गए। When the Kaurava came to earth from...

जब कौरव स्वर्ग लोक से धरती पर आ गए।

आज हम बतायेगे कि जब कौरव स्वर्ग से धरती पर आ गये। 
यह घटना पौराणिक काल की है जो महाभारत की लड़ाई के समय और उसके बाद में कुछ ऐसी घटनाये है जिसको बहुत सारे लोग नहीं जानते है। ऐसी ही विशेष घटना का उल्लेख यहा किया जा रहा है। वास्तव में यह अपने आप में बहुत ही रोचक है। इस घटना में धृतराष्ट्र के विशेष निवेदन पर विशेष आयोजन के द्वारा यह घटित कराया गया था। 

आइये इसके बारे में और जाने -

आज जो जानकारी दी जा रही है वह महाभारत से ली गयी है। यह घटना उस समय की है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था और कौरव के पिता धृतराष्ट्र और उनकी पत्नी गान्धारी अपना हस्तिनापुर छोड़कर वानप्रस्थ जीवन जीने के लिए जंगल में चले गये। लेकिन पुत्र शोक और अपने परिजनों के ना रहने पर उनका एक-एक दिन पहाड़ के समान बित रहा था और आखिर कार दुःख की सीमा इतनी बढ़ गयी के वे अपने आप को ना रोक से और अपने दुःख को दूर करने के लिये अपने गुरु और आचार्य वेद व्यास जी के पास गये और उन्होंने कहा " हे तात श्री हमारे दुःख का कोई उपाय और निवारण करे। महाभारत की लड़ाई के बाद से मेरा मन दुःख से भरा हुआ है। कृपा कर के ऐसी उपाय और युक्ति करे की मात्र एक बार किसी प्रकार से हमारे पुत्रो का दर्शन करा दे "। 
उनके व्यथा और दुःख को सुनकर व्यास ऋषि ने कहा "हे धृतराष्ट्र तुम्हारे पुत्र स्वर्गलोक में है ख़ुशी और प्रशन्नता पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। तुम्हारे आग्रह पर मै एक बार उनकी आत्माओ का आहवाहन यमुना के तट पर करूँगा। आहवाहन के समय आप वहा उपस्थित रहना जिससे आप अपने पुत्रो को देख सकेंगे। 
 
उसके बाद व्यास ऋषि ने यमुना के तट पर विशेष अनुष्ठान और आहवाहन प्रारम्भ किया।पवित्र आत्माओ को रात्रि में बुलाने के बाद व्यास ऋषि ने धृतराष्ट्र से कहा "हे धृतराष्ट्र थोड़े समय के बाद यमुना के मध्य जल प्रवाह में तुम्हारे अपने पुत्रो का साक्षात दर्शन होंगे"। देखते ही देखते कुछ ही देर में यमुना के मध्य जलप्रवाह में एक बहुत ही गहरा और तेज प्रकाश दिखाई दिया। उस प्रकाश की थोड़ी उचाई बढ़ने पर सभी कौरव आस-पास हस्ते खेलते और हसी-ठिठोली करते हुए दिखायी पड़े। 
इन आत्माओ के अंदर कोई दुःख या कष्ट नहीं था वे सभी प्रसन्नता से भरे हुये थे। ऐसा दृश्य देखते ही धृतराष्ट्र भावविभोर हो गये। उसके बाद कुछ क्षणों में सारी आत्माए अदृश्य हो गयी। धृतराष्ट्र को व्यास ऋषि ने समझाया "हे धृतराष्ट्र यह मृत्युलोक है यहा जो जन्म लेता है वह मृत्यु को प्राप्त करता है। लेकिन आत्माये नहीं मरती है वह केवल अलग रूपों में उनका रूपांतरण होता है"। 
उसके बाद महर्षि वेद व्यास और धृतराष्ट्र यमुना तट से  वापस आ गये। यहा जो घटना लोगो के सामने रखी गयी है उसका मात्र उद्देश्य यह है कि प्राचीन काल के हमारे ऋषि मुनि इतने सामर्थ्यवान थे कि मरे हुये व्यक्तियों के आत्माओ को बुला सकते थे। यह उनके ज्ञान और तपस्या का बल था। 

इस प्रकार हमारे चैनल पर अलग-अलग और अद्भुत जानकारी मिलती रहेगी। इसलिए हमारे चैनल को देखते रहे और फॉलो भी करे। 

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