बिना मरे प्राप्त कर सकते है मुक्त अवस्था
आज केइस लेख में हम बताएंगे की बिना मरे प्राप्त कर सकते हैं मुक्त अवस्था।
दुनिया के अधिकतर संप्रदायों में यह बात बताई गई है कि अगर किसी को मुक्त अवस्था प्राप्त करना है तो वह मरने के बाद ही प्राप्त होता है। जबकि सच्चाई यह है कि वह मुक्त अवस्था है ही नहीं। यह एक महाभ्रम पूर्ण प्रचार है जो मानव समाज में व्याप्त है। यह विचार इसलिए फैला हुआ है कि लोगों को मुक्त अवस्था प्राप्त करने की विधि के बारे में पता ही नहीं है। मुक्त अवस्था प्राप्त करना एक विशेष स्थिति होती है जो हम सभी के चित्त से संबंधित होता है। अक्सर लोग मुक्त अवस्था का मतलब यह समझते हैं कि मरने के बाद किसी देवता लोक में रहना ही मुक्त अवस्था है। जबकि वास्तव में सच्चाई यह है कि जिन देवताओं की बात करते हैं उनको खुद ही मुक्त अवस्था प्राप्त नहीं है। दूसरा सबसे बड़ा झूठ से पर्दा उठाना यह भी है कि स्वर्ग लोक का राजा जो इंद्र है वह मालिक है वह मुक्त अवस्था दिलाता है यह भी भ्रम वाला प्रचार है। क्योंकि इंद्र आदि देवताओं की जो लोग चर्चा करते हैं वे सभी काल के अधीन है अर्थात जितने भी ऐसे देवताओं के नाम सुने हैं उन्हें मुक्त अवस्था प्राप्त नहीं है। यही बात अन्य संप्रदाय में भी लागू होती हैं।
आज के इस लेख में जो विशेष ज्ञान दिया जा रहा है वह अत्यंत दुर्लभ एवं दिव्य है जो देवताओं को भी मिलना आसान नहीं है। इसलिए पूरा लेख जरूर पढ़े क्योंकि तभी आप पूरी बात जान पायेंगे।
आई इसके बारे में और जानकारी प्राप्त करें
संसार में प्रत्येक मनुष्य की अंतिम इच्छा यह जरूर रहती है कि वह मुक्त अवस्था प्राप्त करें लेकिन वह सोचता ही रह जाता है और पूरे जीवन ढोंग पाखंड और कर्मकांड में बिता देता है। मुक्त अवस्था वास्तव में एक चैत्तसिक स्थित है और इसके कुछ मूलभूत सिद्धांत है।इसके बिना अनुपालन के मुक्त अवस्था का साक्षात्कार करना संभव नहीं है।मुक्त अवस्था को प्राप्त करने के लिए कुछ योग्यताएं हैं जो आपके पास होनी चाहिए जैसे शील समाधि प्रज्ञा का पालन और इसके साथ पुण्य पारमी और 10 पारमिताओं के बिना कुछ भी संभव नहीं है। बिना इन सब के पालन के एक नहीं, दो नहीं, लाखों जन्म लेने के बाद भी मुक्त अवस्था संभव ही नहीं है।
यहाँ मुक्त अवस्था के बारे में संक्षिप्त परिचात्मक दृष्टिकोण रखा जा रहा है जहां
- शील का मतलब होता है सदाचार का पालन करना ,अपने अंदर अच्छे गुणों का विकास करना और पूरे जीवन नैतिक मूल्यों पर जीवन व्यतीत करना।
- समाधि का मतलब होता है बाहरी चित्त और आंतरिक चित्त को एक साथ जोड़कर मन के गहराई में उतरने का अभ्यास।
- प्रज्ञा का मतलब होता है वह प्रत्यक्ष ज्ञान जिसके द्वारा सत्य असत्य अंधकार प्रकाश और भास्यमान सत्य को भेदते हुए प्रकृति के सभी घटनाओं को जैसा है वैसे ही देखने की शक्ति का विकास करना।
पारमिताएं मनुष्य के अंदर विशेष और दिव्य गुणों के विकास से सम्बंधित है इसे पूरा करने में मनुष्य को थोड़ा समय लगता है। मुक्त अवस्था प्राप्त करने का जो सबसे बड़ा अस्त्र है वह है विपश्यना।
विपश्यना का मतलब होता है किसी चीज को शुद्ध और विशेष रूप से देखना।विपश्यना पाली भाषा का शब्द है। विपश्यना के द्वारा व्यक्ति अभ्यास करते-करते अपनी बाहरी और आतंरिक मन के गहराई के मैल को धो डालता है और धीरे-धीरे ऐसी स्थिति आ जाती है कि संस्कार बनने ही नहीं पाते हैं और मनुष्य ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जिसे नव नित्य सम्भवं के नाम से जाना जाता है इसके बाद मनुष्य अपने अभ्यास और पराक्रम के बल पर चार स्थितियों को प्राप्त करता है। श्रोतापन्न, साकृदागामी,आनागामी, अरिहंत।
इस प्रकार अरिहंत ही ऐसी अवस्था है जो जीवन मुक्ति की अवस्था है इसी के बाद व्यक्ति का कोई भी जन्म नहीं होता वह मुक्त अवस्था प्राप्त कर लेता है।
इस प्रकार समय पर विभिन्न प्रकार के दुर्लभ ज्ञान और महत्वपूर्ण जानकारी हमारे चैनल पर उपलब्ध होता रहेगा धन्यवाद।
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