हम लोग वास्तुदोष का उपाय एवं मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं ,घटनाओ ,कारको ,कारणो पर निष्पक्ष भाव से अपने विचार देते है is blog par vastu tips vastushastr se sambandhit samsyao par content , vastu upay bhi diya jata hai
हम बताएँगे की वह कौनसी महत्त्वपूर्ण बाते है जिसको भवन निर्माण से पहले जानना जरुरी है।
हर कोई अपने जीवन में चाहता है कि अपने लिए मकान की व्यवस्था होनी ही चाहिये। धन अर्जन करते समय व्यक्ति ध्यान देता है कि रहने के लिए एक अच्छा मकान होना ही चाहिए जो सुखी और समृद्धि से भरा हो और हर संभव कोशिश करता है कि बनाया गया मकान जीवन को सुख शांति और उन्नति की तरफ ले जाए लेकिन सुख शांति वाला मकान कैसा बनाया जाए उसमें किन-किन बातों का ध्यान दिया जाए सही मायने में इसकी जानकारी नहीं हो पाती है। क्योंकि ऐसा महत्वपूर्ण ज्ञान उपलब्ध ही नहीं रहता है।
आईये इसके बारे में व्यवस्थित एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करें
भवन का निर्माण व्यक्ति अपने जीवन में एक बार ही कराता है और जिसमे अपने साथ-साथ आने वाली कई पीढ़ी रहने वाली होती है इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भवन निर्माण में एक अच्छी खासी मोटी रकम या धन लगता है जिसमें अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा चला जाता है। ऐसा दुर्लभ एवम् जरूरी ज्ञान हमारे चैनल के माध्यम से दिया जाता है। मकान बनाने से पहले कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान देना जरूरी होता है जिसका ध्यान नहीं देने पर जीवन में बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं इसलिए इसके लिए महत्वपूर्ण जरूरी बातें जो मकान बनाने से पहले ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण के लिए ऐसी भूमि नहीं लेनी चाहिए जहां भूमि में दिमक और हड्डियां हो। हड्डियों वाली भूमि से कष्ट एवं रोग मिलता है।
ऊसर भूमि पर भवन निर्माण नहीं कराना चाहिए क्योकि ऊसर भूमि से धन का नाश होता है और घर परिवार में सभी प्रकार की वृद्धि रुक जाती है।
जो भूमि उपजाऊ एवं हरियाली से परिपूर्ण होती है ऐसी भूमि पर भवन निर्माण शुभ होता है यदि ऐसी भूमि पर निर्माण होता है तो इस बात का विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए की आसपास अथवा आगे पीछे शमशान भूमि नहीं होना चाहिए यह अशुभ होता है क्यों कि इससे शांति भंग होती है।
भूमि के पूरब या उत्तर दिशा में नदी का होना वास्तु के सिद्धांत के अनुसार शुभ होता है जबकि दक्षिण - पश्चिम में नदी का होना अशुभ माना जाता है।
इस प्रकार इन सभी बातों का ख्याल रखा जाए तो घर परिवार में होने वाली विभिन्न समस्याओं से बचा जा सकता है।
इस दिशा में है मंदिर तो उसके आसपास न बनवाएं भवन अब तक जन सामान्य लोग यही जानते रहे हैं कि मंदिर हमेशा शुभ होता है जबकि मंदिर और भवन के बीच में दिशा महत्वपूर्ण होती है जिसका हमें ध्यान देना चाहिए
आइये इसके बारे में जाने
मंदिर श्रद्धा का केंद्र होता है इसलिए अपने आप में महत्वपूर्ण है लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण के लिए कई सारी बातें ध्यान देनी चाहिए जो जरूरी होती है और जिनकी भूमिका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकती है।
यहां पर एक विशेष बात जो बताई जा रही हैं जो काफी लंबे समय और बड़े वर्ग समूह में भ्रम का कारण बना हुआ ऐसे भ्रम को दूर करते हुए मनुष्य के सुख पूर्ण जीवन बिताने के लिए दिशा के अनुसार मंदिर कहां और किस प्रकार होनी चाहिए उस पर थोड़े शब्दों में प्रकाश डाला जा रहा है।
आवासीय भूमि के आसपास मंदिर भवन निर्माण को प्रभावित करती हैं।
जैसे मंदिर यदि भवन के दक्षिण में स्थित है तो भौतिक उपलब्धियों का नुकसान होता है।
यह मंदिर यदि भवन के बाये स्थित है तो कष्ट एवं दुख प्राप्त होते हैं।
यदि यह मंदिर आवासीय भूमि के सामने हैं तो प्रगति में रुकावट आती है।
यदि मंदिर पश्चिम में है तो धन और प्रतिष्ठा की हानि होती है।
इसलिए भूमि का चयन करते समय अगर इन सभी बातों का ध्यान रखें तो भविष्य में आने वाली कष्ट और समस्याओं से बचा जा सकता है।
भवन का निर्माण एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। इसलिए समय समय पर महत्वपूर्ण एवं जरुरी जानकारी इस चैनल के माध्यम से आपके सामने लेकर आते रहेंगे।
राम रहीम इंशा गुरमीत सिंह के उन्नत्ति और पतन की सच्चाई जाने।
राम रहीम ईशा के उन्नति और पतन की सच्चाई जाने।
आप लोगो के सामने जो लेख हैं यह सामाजिक भ्रम, पाखंड और गलत मानसिकता को दूर करने के लिए एक औषधि का काम करेगी क्योंकि सुख शांति और प्रगति के लिए स्वच्छ मानसिकता का होना जरूरी है। इसलिए हम सभी इस चैनल के माध्यम से समाज में स्वच्छ मानसिकता के निर्माण के लिए और भ्रम से पर्दा उठाने के लिए यह जानकारी दे रहे हैं। वास्तव में समाज में कुछ ऐसे वर्ग समूह है जो मिस गाइड है या निजी स्वार्थ के कारण सही रास्ते और न्याय पर नहीं चल पाते हैं। अंधविश्वास कभी भी अच्छा नहीं हो सकता है क्योंकि यह मूढ़ता का प्रतीक है।
आईये इस पर संक्षिप्त में बात करें।
आज के टॉपिक में ऐसे ही भ्रम से पर्दा उठाने की बात की जा रही है। आज हम जो बात करने जा रहे हैं राम रहीम इंसा गुरमीत सिंह के बारे में जिसमें हम जानेंगे कि इसकी उन्नति और पतन कैसे हुआ। हम सबसे पहले जानेंगे कि राम रहीम डेरा प्रमुख कैसे बना ?
राम रहीम हिंसा गुरमीत सिंह मगहत का पुत्र और गंगानगर राजस्थान का रहने वाला है। राम रहीम के पिता राजस्थान के बड़े जमीदारों में गिने जाते थे उसके पिता डेरा से जुड़े हुए होने के कारण यह भी डेरा के संगठन से जुड़ गया। डेरा सच्चा सौदा का नियम था कि उत्तराधिकारी चुनने के लिए मठाधीश गोपनीय रूप से उत्तराधिकारी का नाम लिफाफे में लिखकर सिरान्हे रख कर सो जाते थे और यह उसे समय खुलता था जब डेरा समूह के प्रमुख की मृत्यु हो जाती थी। लेकिन यह नियम राम रहीम के लिए टूट गया क्योंकि राम रहीम डेरा का प्रमुख षड्यंत्र से बन गया जबकि लोगों को इसके लिए भ्रमित किया गया था।
इस षड्यंत्र में मुख्य भूमिका गुरजन सिंह की रही थी जो पहले आतंकी संगठन खालिस्तान संगठन का सक्रिय कार्यकर्ता था। और गुरजन सिंह राम रहीम का पक्का दोस्त होने के नाते यह पूरी तरह खुलकर सपोर्ट किया और षड्यंत्र का ऐसा खेल खेला की राम रहीम को डेरा का प्रमुख बनवा दिया जबकि कुछ दिनों बाद गुरजन सिंह पुलिस के हाथों मारा गया। इसी प्रकार एक बलात्कारी हत्या आरोपी राम रहीम गुरमीत सिंह अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।
उस समय राम रहीम गुरजीत सिंह लगभग 22 साल का था। राम रहीम शौकीन और शान शौकत ,अय्याश स्वभाव के कारण पूरा जीवन मजा लेने में लगा रहा। इस प्रकार उसने राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बना ली। इसी कारण हत्या ,जान से मारने की धमकी ,बलात्कार जैसे संगीन अपराध के आरोप लगने के बावजूद भी राजा महाराजाओं जैसे ठाट बाट वाली जिंदगी जी रहा था। सरकार में इसकी पकड़ होने के बावजूद शासन के पकड़ में नहीं आ रहा था और ना ही न्यायपालिका का ही चिंता किया। फिर इसे दंड देने के स्थान पर एक जरूरी काम यह हुआ कि इसे सम्मान देने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी जैसे महाराष्ट्र सरकार के माननीय मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फणनवीश ने अपने हाथों से गुड पर्सनालिटी का अवार्ड दिया। इसके बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर सरकार ने ससम्मान 51 लाख का अनुदान सप्रेम भेट किया और केंद्र सरकार द्वारा जेड सुरक्षा भी प्रदान किया गया इसके अलावा राम विलास शर्मा जिनको शायद ही आप सभी लोग नहीं जानते होंगे यह माननीय शिक्षा मंत्री हरियाणा सरकार है जो राम रहीम पप्पा के अंधभक्त थे जो समय-समय पर उनके पैरों की धूल लेने जाते थे और वर्तमान समय में जब विवाद आगे बढ़ने लगा तो इनका कहना था कि राम रहीम के सभी भक्त शांति प्रिय और सज्जन है। ऐसा कोई बवाल या झंझट नहीं होने वाला है। समस्या के आगे बढ़ने पर न्याय पालिका को कठोर कदम उठाना पड़ा और पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दिया गया। यहां स्थिति नियंत्रण में न होने की स्थिति में पंजाब और हरियाणा सरकार दोनों राज्यों की पुलिस प्रशासन को संयुक्त रूप में कार्यवाही के लिए भेजना पड़ा इस प्रकार शांति व्यवस्था के लिए 90000 सुरक्षा कर्मियों को तैनात करना पड़ा जबकि इसमें पंजाब की 35 सुरक्षा कंपनियां तथा हरियाणा के 75 सुरक्षा कंपनियों को लगाया गया।
राम रहीम के ऊपर ऐसे कई गंभीर आरोपों में 24 अक्टूबर 2002 में रामचंद्र छत्रपति वरिष्ठ सरकार पत्रकार और रणजीत सिंह सेवादार की हत्या का भी आरोप है। ऐसे संगीन अपराध के कारण 2003 में कोर्ट ने न्यायपालिका में पेश होने के लिए आदेश दिया था। जिसका इसने अवमानना करते हुए बहाना बनाकर बच निकला। आश्चर्य की बात है कि ऐसे संगीन अपराधी के लिए अंधभक्तो और समर्थकों द्वारा जमकर उपद्रव बवाल करते हुए कई गाड़ियों को जलाया दिया गया जिससे उसे जगह कर्फ्यू जैसे स्थिति बन गई और इन परिस्थितियों को देखते हुए बरनाला पटियाला पंचकूला में सुरक्षा व्यवस्था तेज कर दी गई। वास्तव में इस आरोप की शुरुआत एक साहसी लड़की द्वारा 13 मई 2002 को एक अज्ञात लड़की के द्वारा पत्र भेजा गया जो इस समय के वर्तमान बीजेपी पार्टी के प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहार वाजपेई जी को प्राप्त हुआ। जिसे उन्होंने इसे सीबीआई को सौंप दिया। जिसका न्याय का समय होते-होते अब बारी आई है। जिससे डेरा समर्थक और राम रहीम के शिष्य आग बबूला होते जा रहे हैं परंतु न्यायपालिका के न्यायाधीश के निष्पक्षता के कारण यह कार्यवाही यहां तक पहुंच पाई है।अब इसे रुकने की सम्भावना नहीं है जिस पर सजा का फाइनल निर्णय की घोषणा 28 अगस्त 2017 को होने की संभावना है।
अब कम से कम हमारे देश की बोली भाली जनता को ऐसे ढोंग पाखंड वाले बाबाओ की करतूत समझनी चाहिए और अंधविश्वास से उठकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले मार्ग पर चलते हुए प्रज्ञा शील समाधि के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए फिर मिलेंगे नयी व महत्त्वपूर्ण जानकारी के साथ तब तक के लिए
मानव में ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ यह उत्सुकता हुई कि ऐसी कोई विधि विकसित की जाए जिससे प्राचीन काल की सभ्यताओं के बारे में जानकारी करना संभव हो सके इसी क्रम में ऐसी कई वैज्ञानिक विधियों का विकास किया गया जिसके बारे में हम यहां चर्चा करेंगे ।
आइए इसके बारे में जाने
अंग्रेजों के भारत में आने से पहले यहां इतिहास और प्राचीन सभ्यताओं के नाम पर केवल धार्मिक किताबों का ही पठन-पाठन होता था क्योंकि यहां के लोगों को ऐसे किसी विधि के बारे में जानकारी थी ही नहीं क्योंकि यहां के लोग इतिहास लिखना जानते ही नहीं थे और ना ही इतिहास का संग्रह करना महत्वपूर्ण था। इस पूरे भारत की शिक्षा प्रणाली में निराधार तथ्यों की जानकारी और ढोंग पाखंड का जाल बिछा था अंग्रेजों के आने के बाद यहां की शिक्षा प्रणाली को नई दिशा मिली जिससे इतिहास और पुरातत्व का अध्ययन प्रारंभ हुआ।
भारत में तो पुरा तत्वों के अवशेषों को ढोंग पाखंड से जोड़ दिया गया था इसलिए मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी सभ्यताओं के साथ-साथ भगवान बुद्ध के सभी प्राचीन स्थल उपेक्षा के शिकार हो गए अर्थात उन पर ध्यान नहीं दिया गया पुरातत्व को सही दिशा और मार्गदर्शन तब मिला जब 1856 में लार्ड एलेक्जेंडर कनिंघम ने प्राचीन स्थलों का विधिवत सर्वेक्षण का कार्य किया और उसके बाद ही लॉर्ड कनिंघम ने 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की इन्होंने ह्वेनसांग की यात्रा पद का अनुसरण करते हुए दो खोजी अभियान 1861 से 1868 तक तथा 1871 से 1885 के मध्य चलाया इसके तहत बड़े स्तर पर उत्तर भारत का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया गया
दूसरा महत्वपूर्ण खोजी अभियान 1921 से यह मान का आरंभ किया गया कि पहले से खोजे गए बौद्ध स्थलों की तरह यह भी कोई बौद्ध स्थल ही होगा लेकिन इस खुदाई से ज्ञात हुआ कि यह प्राचीन सभ्यता से संबंधित है जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना गया।
प्राचीन वस्तुओं की खोज के लिए वैज्ञानिक कई विधियों का उपयोग करते हैं जिसमें रेडियो कार्बन 14 और जैव नवीन विश्लेषण पद्धति सम्मिलित है। इन विधियों के माध्यम से ही प्राचीन धरोहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे सभ्यताओं की जानकारी की गई।