शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

रानी पदमावती का जीवन जब एक जादूगर ने किया बर्बाद ?

रानी पदमावती का जीवन जब एक जादूगर ने किया बर्बाद 
रानी पद्ममावती का जीवन जब एक जादूगर ने किया बर्बाद 

आज हम बतायेंगे कैसे रानी पद्ममावती का जीवन एक जादूगर ने बर्बाद किया। 
भारतवर्ष में बहुत सारे ऐसे ऐतिहासिक ,चर्चित एवं प्रसिद्धि घटनाये हुये है। जो पूरी दुनिया के लिए बार बार आश्चर्य करने वाली घटनाओ के रूप में सामने आती रही है। यहाँ कि भूमि महान एवं अद्भुत लोगो के लिये प्रसिध्द मानी जाती है। 
ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख यहा किया जा रहा है। इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते है। 
हमारे चैनल के टीम की बराबर यह कोशिश रहती है की लोगो के अन्दर उत्पन्न भ्रम की स्थिति क्लियर करके लोगो के सामने साफ़-साफ़ व सरल रूप से रखा जाय। 

आइये टाइटल के अनुसार और जानकारी प्राप्त करें

आज के वीडियो में जो जानकारी दी जा रही है वह ऐतिहासिक घटना से सम्बंधित है और यह घटना भारतीय इतिहास में एक संवेदनशील घटना के रूप में याद किया जाता है। यह जानकारी और बाते रानी पद्ममावती के बारे में है। उस रानी पद्ममावती के बारे में है जो अपने बचपन से लेकर युवा अवस्था तक का ज्यादा से ज्यादा समय हीरामणि तोता के साथ बिताया करती थी। क्योकि यह घटना उनके जीवन के महत्वपूर्ण यादगारो में शामिल है। 
रानी पद्ममावती का ऐतिहासिक काल चक्र 12 व 13वी  शदी से सम्बंधित है। यह घटना उस समय की है जब दिल्ली के तख़्त पर अल्लाउद्दीन खिलजी का शासन था। रानी पद्ममावती,राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी जो सिंघल प्रान्त के राजा थे। इनकी माता का नाम चम्पावती था। समय के साथ -साथ रानी पद्ममावती अपने अद्भुत सुंदरता के साथ युवा होने लगी। इनके  पिता ने इनके  विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन करने का विचार किया। स्वयंवर में अलग-अलग प्रान्तो के छोटे-बड़े राजा उपस्थित हुये जिन्हे स्वयंवर की प्रतियोगिता को पास करके रानी पद्ममावती से विवाह करना था। स्वयंवर में एक छोटे राज्य का राजा मलखान सिंह भी आया था जो स्वयंवर में काफी चर्चित था। लेकिन उस समय चितौड़गढ़ से राजा रावल रतन सिंह भी आये हुये थे जिनकी पहले से ही नागमती नाम की पत्नी थी,उस समय अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिये बहु विवाह करने की प्रथा थी इसी प्रथा के तहत राजा रतन सिंह मलखान सिंह को स्वयंवर की प्रतियोगिता में पछाड़ कर स्वयंवर में सबसे आगे आकर रानी पद्ममावती से विवाह कर लिया। विवाह करने के पश्चात राजा रावल रतन सिंह अपने राज्य चितौड़गढ़ वापस आ गये।  
राजा रतन सिंह कला प्रेमी और एक अच्छे राजा होने के साथ साथ अपनी पत्नी के अच्छे पति भी थे। कला प्रेमी होने के कारण  उनके दरबार में बहुत सारे विद्वान और कलाकार रहा करते थे जो अपने -अपने कलाकृति के कारण से राजदरबार के रत्न  कहे जाते थे। 

राजदरबार के रत्नो में एक कलाकार राघव चेतन सिंह भी था जो एक संगीतज्ञ था और बासुरी वादन में बहुत ही निपुण था। इसके अन्दर एक और विशेषता थी जिसके बारे में बहुत कम लोगो को जानकारी थी। वह विशेषता यह थी कि वह एक निपुण जादूगर भी था। अपने जादूगरी विद्या का उपयोग दुश्मनो को हारने के लिये भी करता था। एक बार ऐसा हुआ कि विश्वस्त सूत्रों से राजा रतन सिंह को मालूम हुआ कि राघव चेतन सिंह रात-विरात बुरी आत्माओ का आहवाहन करता है इस जानकारी के बाद राजा रतन सिंह रोष एवं गुस्से में आ गये उन्होंने राघव चेतन सिंह का सर मुड़वा कर मुह में कलिक पोतकर गधे पर बैठाकर पुरे राज्य में घुमाने के बाद राज्य से हमेशा के लिये बाहर निकाल दिया। इस अपमान के कारण राघव चेतन सिंह बदला लेने के मनसा से अल्लाउद्दीन खिलजी से मिलने का विचार बना लिया और सुल्तान से मिलने दिल्ली चल पड़ा। दिल्ली से कुछ दूर पहले एक घना जंगल हुआ करता था उसी जंगल में वह ठहर गया और वह मौके का तलाश करने लगा कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी जब भी इस जंगल में शिकार खेलने आयेंगे तो उस मौके का लाभ उठाकर सुल्तान से जरूर मिलेंगा। कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ। 
ज्यों उसे भनक लगी कि सुल्तान जंगल में शिकार खेलने आया हुआ है ठीक उसी समय राघव चेतन सिंह अपने संगीत वाले गुण के बल पर बहुत ही सुन्दर धुन में बासुरी बजाने लगा। उसके बासुरी के धुन को सुनकर सब आश्चर्य  में पड़ गये कि इतनी सुन्दर आवाज में बासुरी कौन बजा रहा है वह भी इस घने जंगल में। इस मधुर आवाज को सुनकर सुल्तान ने अपने सैनिको से बासुरी बजाने वाले को पकड़ कर लाने को कहा इसके बाद कुछ सैनिको ने उसे खोजना शुरू किया। और राघव चेतन सिंह को खोजकर सुल्तान के सामने पेश किया। सुल्तान इसके संगीत के गुण को देखते हुए महल में सम्मान पूर्वक रहने के लिए प्रस्ताव दिया। सुल्तान की इस बात को सुनकर राघव चेतन सिंह ने कहा कि आपके पास बहुत सारी उपभोग की चीजें हैं उसके बाद भी मुझ जैसे साधारण आदमी को क्यों रखना चाहते हैं इस बात को सुनकर अल्लाउद्दीन खिलजी ने राघव चेतन सिंह को अपनी बात साफ साफ कहने को कहा उसके बाद राघव चेतन सिंह ने बताया कि राजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्ममावती बहुत ही सुंदर है ऐसी सुंदर पत्नी तो आपके पास होनी चाहिए 

इस प्रकार रानी पद्ममावती की सुंदरता की बढ़ाई सुनकर सुल्तान की वासना जाग उठी और रानी पद्ममावती को प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो गया और चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने का निर्णय लिया लेकिन चित्तौड़गढ़ पहुंचने के बाद किले से कुछ दूर पहले रुक गया क्योंकि किले की सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी थी। जिससे सुल्तान को लगा कि आक्रमण करना ठीक नहीं होगा। इसलिए एक चाल चलने की योजना बनाई।  एक अपना दूत  भेजकर राजा रतन सिंह को संदेशा भिजवाया की रानी पद्ममावती को अपनी बहन की तरह मानता हूं इसलिए भाई मान कर एक बार मिलने का मौका दे।  सुल्तान के इस प्रस्ताव को राजा रतन सिंह यह सोचकर मान गए कि उसके  इस प्रस्ताव को मान कर प्रजा की रक्षा होगी साथ ही साथ सुल्तान के गुस्से से बच भी जाएंगे।  इस कारण अपनी पत्नी रानी पद्ममावती का चेहरा मिरर में दिखाने के लिए राजी हो गए। यह बात सुनते ही सुल्तान अपने कुछ चुनिंदा बलशाली योद्धाओं के साथ महल में दाखिल हुआ और पहले से निर्धारित योजना के अनुसार शीशे में रानी पद्ममावती का चेहरा देखा और रानी पद्ममावती को देखते ही सुल्तान वासना से पागल हो गया और उसी पल  अंदर ही अंदर मन में निर्णय लिया कि इसे अपनी पत्नी बनाकर अपने हरम में जरूर रखेंगे फिर उसके बाद सुल्तान षड्यंत्र द्वारा राजा रतन सिंह को अपने खेमें में मुलाकात करने का प्रस्ताव रखा सुल्तान के इस प्रस्ताव को सुनकर राजा रतन सिंह अपनी दोस्ती को मजबूत करने के लिए सुल्तान के खेमे में पहुंच गए सुल्तान और राजा रतन सिंह खेमे में बराबर टहल रहे थे उसी छड़ मौका देख कर सुल्तान ने राजा रतन सिंह को बंदी बना लेने का आदेश दे दिया। राजा रतन सिंह को बंदी बना लेने के बाद महल में संदेशा भिजवाया यदि रानी पद्मावती को मेरे खेमे में नहीं लाया गया तो राजा रतन सिंह की हत्या कर दी जाएगी। इस संदेश को सुनकर राजा रतन सिंह के सेनापति ने और रानी पद्ममावती ने योजना बनाई कि राजा को षड्यंत्र द्वारा ही बचाया जा सकता है।  इस पर रानी पद्ममावती ने संदेशा भेजवाया कि अगले सुबह 150 दासियो के पालकियों सहित मैं स्वयं भी आपके खेमे में आऊंगी।  दूसरे दिन रतन सिंह के प्रमुख सेनापति गोरा और बादल अपने चुनिंदा सैनिकों के साथ शस्त्र सहित भेष बदलकर पालकियों में बैठ गये। 
 150 पालकियों को आता देख सुल्तान ने अपने सैनिको को आदेश दिया कि इन पालकियों को ना रोका जाय। पालकिया वहा जाकर रुकी जहां राजा रतन सिंह कैद थे। रतन सिंह पालकियों को देखकर बहुत शर्मिंदा हुए की पालकी में उनकी पत्नी भी आई होगी। परंतु उन पालकियों में रानी और दासियो के जगह पर सैनिक थे जो अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित थे और मौका देखकर ताबड़तोड़ सभी सैनिकों ने धावा बोल दिया और इसी मौके को देखकर गोरा और बादल ने राजा रतन सिंह को छुड़ा लिया। छुड़ाने के दौरान ही गोरा वीरगति को प्राप्त हो गये जबकि बादल दुश्मनों के खेमे में से घोड़ा चुराकर राजा रतन सिंह को घोड़े पर बैठा कर महल की ओर भागे। 
इस प्रकार बादल राजा को बचाने में सफल हो गये सैनिकों के इस चालबाजी से सुल्तान आग बबूला हो गया और महल का घेराबंदी करने का निर्णय लिया। लगातार कई दिनों तक घेरा बंदी करके बैठा रहा। कुछ दिनों के बाद महल में खाद्य सामग्री आपूर्ति की कमी हो गयी। खाद्य आपूर्ति का अन्य कोई मार्ग ना होने के कारण अंत में राजा रतन सिंह ने महल का द्वार खोलने का आदेश दे दिये। जिससे सुल्तान के सैनिक और राजा रतन सिंह के सैनिकों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। इस घमासान युद्ध के बीच राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। यह समाचार सुनने के बाद रानी पद्ममावती ने सोचा अब चित्तौड़ के सारे पुरुष मार दिए जाएंगे। इसलिए सामूहिक रूप से पद्ममावती के साथ बहुत सारी महिलाओं ने जौहर करने का निर्णय लिया और एक-एक करके सभी आग में कूदती चली गयी। बाद में जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना अंदर पहुंची तो वहां की स्थिति को देखकर सुल्तान और उसकी सेना हाथ मसल कर रह गयी। उनके सामने राख के ढेर और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं था।  इस प्रकार रानी पद्ममावती की सुंदरता और त्याग को इतिहास में याद किया जाता है। 

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